World Blood Donor Day
एक व्यक्ति का रक्त कई जीवन बचाता है, जागरूकता और स्वैच्छिक रक्तदान है आवश्यक: ढींडसा
सिरसा 14 जून 2024: विश्व रक्तदाता दिवस पर रक्तदान की आवश्यकता और महत्व पर प्रकाश डालते हुए जेसीडी विद्यापीठ के महानिदेशक एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ कुलदीप सिंह ढींडसा ने बताया कि हर साल 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है, जो उन सभी रक्तदाताओं का सम्मान करता है जो अपने रक्तदान से अनगिनत जीवन बचाते हैं। उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति का रक्त कई जीवन बचाता है, जागरूकता और स्वैच्छिक रक्तदान आवश्यक है । विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 1997 में 100 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की नीति बनाई और निर्धारित किया कि विश्व के प्रमुख 124 देशों में स्वैच्छिक रक्तदान को समर्थन और बढ़ावा दिया जाएगा। इसका उद्देश्य यह था कि आपात स्थितियों में जरूरतमंद व्यक्तियों को बिना भुगतान किए और आसानी से रक्त की आपूर्ति संभव हो सके, ताकि खून की कमी के कारण किसी व्यक्ति की जान न जाए।
मानवीय दृष्टिकोण से WHO का यह कदम बेहद सराहनीय था। किंतु दुर्भाग्यवश, इस पवित्र अभियान के साथ आज तक लगभग 49 देश ही जुड़ पाए हैं। विश्व रक्तदाता दिवस पर विशेष चर्चा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि म्यांमार जैसे देशों में भी कुल जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा स्वैच्छिक रक्तदान से ही पूरा होता है। ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और कुछ अन्य देशों में भी यही स्थिति है।
डॉक्टर ढींडसा ने बताया कि भारत में रक्तदान की स्थिति चिंताजनक है। WHO के मानकों के अनुसार, भारत में साल भर के लिए एक करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन हम इसे नहीं जुटा पाते हैं। आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में प्रत्येक वर्ष हजारों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। राजधानी दिल्ली में ही हर साल 3.5 लाख यूनिट की आवश्यकता पड़ती है, जबकि स्वैच्छिक रक्तदान के द्वारा इसका महज 22 प्रतिशत हिस्सा ही पूरा हो पाता है।
खुशी की बात यह है कि नेपाल जैसे सीमित संसाधनों वाले देशों में कुल जरूरत का लगभग 10 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है। वहीं, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों में क्रमशः 60 और 77 प्रतिशत रक्तदान स्वैच्छिक होता है। श्रीलंका में 60 प्रतिशत रक्तदान स्वैच्छिक होता है। लेकिन, दिल्ली जैसे बड़े शहर में भी ब्लड बैंकों में आधा लाख यूनिट रक्त की कमी है। यह स्थिति देश के अन्य हिस्सों में और भी खराब हो सकती है।
ढींडसा ने बताया कि रक्तदान के प्रति जन जागरूकता का अभाव रक्त की कमी का प्रमुख कारण है। देश की 140 करोड़ की जनसंख्या के बावजूद, स्वैच्छिक रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं हो पाया है। हालांकि सरकार ने रक्तदान से संबंधित नियम और शर्तें निर्धारित की थीं, जिनमें पहली बार रक्तदान के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 18 वर्ष और अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष तय की गई। नए नियमों के अनुसार, स्वस्थ व्यक्ति 90 दिन बाद दोबारा रक्तदान कर सकता है। जिस व्यक्ति का हीमोग्लोबिन 12.5 से ज्यादा होगा, वहीं रक्तदान कर सकेगा।
ढींडसा ने बताया कि रक्तदान करने से पहले, दाताओं के शरीर के वजन, रक्तचाप, हीमोग्लोबिन, मलेरिया, एचबीएसएजी, एचआईवी, एचसीवी आदि की प्रमुख जांचें निशुल्क की जाती हैं। इस प्रकार, रक्तदान न केवल दूसरों की जान बचाने का माध्यम है बल्कि स्वयं दाता के स्वास्थ्य की भी नियमित जांच हो जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 11.74 करोड़ यूनिट रक्त दान के जरिए एकत्र किया जाता है। जाहिर है कि रक्तदान करना अत्यंत आवश्यक है। आइए, इस विश्व रक्तदाता दिवस पर हम सब मिलकर रक्तदान के महत्व को समझें और अधिक से अधिक लोगों को इसके लिए प्रेरित करें।